कुंभ मेला धर्म, आस्था, और भक्ति का दुनिया के सबसे बड़े समागमों में से एक है, जिसमें पूरी दुनिया समर्पित श्रद्धा और भक्ति भाव से भाग लेती, और पवित्र नदी में मुक्ति(मोक्ष) की आशा से डुबकी लगाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि कुंभ की शुरुआत कहाँ से हुई, इसका महत्व क्या है, कुंभ से जुड़ी कहानी क्या है? आइए हम आपको इस दिव्य अनुभव पर ले चलते है जहाँ आपको इन सभी प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे -
उत्तराखंड को हमेशा से ही देवभूमि (देवताओं की भूमि) माना जाता रहा है। सदियों से यह भूमि ऋषि मुनियों, साधुओ की साधना की भूमि के रूप में जानी जाती है। यह शिवधाम (केदारनाथ), विष्णु की भूमि (बद्रीनाथ, हर-की-पौड़ी), स्वर्ग से उतरती तीन पवित्र नदियों गंगा, यमुना, सरस्वती का उद्गम स्थल, तथा अन्य देवगणो व ऋषियों का स्थान रहा है ।
कुंभ का इतिहास काफी प्राचीन है माना जाता है। माना जाता है कुम्भ 600 ई.पू से मनाया जाता था जिसे बाद में आदि-गुरु शंकराचार्य द्वारा पुनर्जीवित किया गया। कुंभ का शाब्दिक अर्थ होता है - कलश या घड़ा। जिसका एक अन्य अर्थ ज्योतिषीय राशि कुंभ से भी जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिससे समुद्र से 14 बहुमूल्य रत्नों की उत्पत्ति हुई।
लक्ष्मी, अप्सरा रम्भा, वारुणी देवी, कामधेनु, ऐरावत, उच्छिरावस, कौस्तुभ, परिजात, धनवंतरी, हलाहल (विष), शंख, कल्पवृक्ष, अमृत कलश ।
परन्तु समुद्र मंथन के पश्चात, अमृत प्रकट होते ही देवता और राक्षस उस कलश के अपनाने और अमृत पान करने के लिए लड़ने लगते हैं। इसलिए, दानवों से इस कलश को छिपाने के लिए चार देव (बृहस्पति, सूर्य, चंद्र और शनि) अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ गये, जिसे देख राक्षसों ने भी उनका पीछा करना शुरू कर दिया। यह पीछा 12 दिनों और रातों तक चला। पीछा करने के दौरान देवता इस कलश को चार अलग-अलग स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन, नासिक में छिपा देते हैं। जिस कारण हर बारह वर्षो में, इन स्थानों पर कुंभ मनाया जाता है।
एक अन्य कुंभ से जुड़ी कथा यह कहती है कि - जब धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट होते है, तो जयंत (इंद्र का पुत्र) देवताओं के इशारे पर अमृत कलश लेकर आकाश में उड़ जाते है। यह देख राक्षस सेना उनके पीछे दौडती है और 12 दिनों तक उनका पीछा करते हैं। इस दौरान चार अलग-अलग स्थानों पर कलश से अमृत की कुछ बूँदें धरती में गिर जाती हैं ( हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक), और जँहा-जँहा ये अमृत की बूंदें गिरती है उन जगहों पर कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है। ये 12 दिन, मनुष्यों के 12 सालों के बराबर थे, इसलिए हर 12 साल में इन स्थानों पर कुंभ मनाया जाता है।
पौराणिक काल से ही गंगा नदी को पाप नाशनी के नाम से सम्बोधित किया जाता है, जो मनुष्य को सभी पापों से मुक्त कर उन्हें मोक्ष प्रदान करती है। यह माना जाता है कि कुंभ योग के समय गंगा का पानी सकारात्मक ऊर्जा से भरा होता है और जल, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरणों से भरा होता है इसलिये कुम्भ के समय पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य सभी सांसारिक पापों और अन्य रोगों से मुक्त हो जाते हैं।
कुंभ मेला शाही स्नान पर सबसे पहले स्नान का नेतृत्व नागा साधुओं और अखाड़ों के संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है। सबसे पहले संत और नागा संत, ब्रह्ममुहरत में स्नान किया जाता हैं, और उसके बाद आम लोगों को पवित्र नदी में स्नान करने की अनुमति मिलती है। यह प्रक्रिया लगभग सुबह ३ बजे से शुरू हो जाती है।
हर कुंभ मेले की तारीखों की गणना सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा की राशि के पदों के संयोजन के अनुसार की जाती है। शाही स्नान आमतौर पर पूर्णिमा या अमावस्या के दिन आयोजित किया जाता है। हरिद्वार में कुंभ उस वर्ष मनाया जाता है जिस वर्ष ज्योतिषीय गड़ना के अनुसार जब शुक्र और बृहस्पति कुंभ राशि में, और सूर्य और चंद्रमा मेष और धनु राशि में आते हैं। कुंभ मेले में स्नान का यह पर्व मकर संक्रांति से शुरू होकर अगले पचास दिनों तक चलता है, लेकिन इस कुंभ स्नान में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण ज्योतिष तिथियां होती हैं, जिनका विशेष महत्व होता है, यहीं कारण है कि इन तिथियों को स्नान करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु तथा साधु इकट्ठे होते हैं।
कुंभ मेला हर तीन साल में रोटेशन में चार शहरों (हरिद्वार, प्रयाग, नासिक, उज्जैन) में आयोजित किया जाता है, इस प्रकार प्रत्येक स्थान को 12 साल के बाद ही अपनी बारी मिलती है।
हरिद्वार में पिछला कुंभ मेला उत्सव 2010 में आयोजित किया गया था, इसलिए गणितीय रूप से अगला कुंभ 2022 में होना चाहिए, लेकिन यह 2021 में मनाया जाएगा। इसका कारण यह है कि 100 से अधिक वर्षों के बाद कुंभ पहले आयोजित किया जाता है, और जैसा कि हमने पहले बताया कि हरिद्वार में कुम्भ सूर्य, चंद्र, बृहस्पति और कुंभ राशि के एक निश्चित स्थिति पर ही आयोजित होता है, जो कि इस बार एक वर्ष पूर्व 2021 में ये स्थिति होने वाली है। इसलिये कुंभ मेला 2021 में शुभ तिथियों और ज्योतिषीय स्थितियों के कारण एक वर्ष पूर्व आयोजित हो रहा है।
कुंभ मेला हरिद्वार 2021 की शाही तिथि इस प्रकार है - जिसमे पहला प्रमुख स्नान 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर है, जबकि 11 मार्च 2021 को पहला और 27 अप्रैल को अंतिम शाही स्नान है।
हरिद्वार भारत के प्रमुख प्राचीन हिंदू तीर्थ स्थलों मे से एक है, जिसे "डोरवे ऑफ़ अबोड्स (मोक्ष द्वार)" के रूप में भी जाना जाता है। यह वह स्थान है जहाँ गंगा पहाड़ों और घाटियों को पीछे छोड़ते हुए मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। यह विष्णु और शिव दोनों की ही कर्म भूमि रही है, इसलिए इसका धार्मिक महत्व हिंदुओं के लिए अधिक बढ़ जाता है। 2021 हरिद्वार कुम्भ में आप हरिद्वार की कुछ प्रमुख लोकप्रिय जगहें भी जा सकते हैं, जैसे - हर-की-पौड़ी, चंडी देवी मंदिर, मनसा देवी मंदिर, माया देवी मंदिर, दक्ष मंदिर, सती कुंड, विवेकानन्द पार्क (जंहा 108 फ़ीट की विशाल शिव प्रतिमा है), शांति कुंज, आदि।
कनखल भी हरिद्वार में स्थित एक छोटा टाउन है जो मुख्य हरिद्वार से कुछ ही किलोमीटर दूर है और शिव-सती के पौराणिक कथाओ से संबंध रखता है। कनखल माता सती के पिता दक्ष की नगरी मानी जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार कनखल में स्थित दक्ष मंदिर स्थान पर राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ आयोजित किया, जिसमे उन्होंने अपने दामाद (भगवान शिव) को छोड़कर सभी को आमंत्रित किया। अपने पिता के ऐसे व्यवहार के कारण सती ने स्वयं को बहुत अपमानित महसूस किया एवं यज्ञ की पवित्र अग्नि में अपने जीवन का बलिदान दे दिया।
मध्य काल में कनखल में अनेक राजाओ -महराजाओं ने इस क्षेत्र पर शासन किय। यही कारण है कि आज भी वंहा स्थित कई हवेलियों, महलो, घरो उस काल के चित्र, वास्तुकला आदि दीवारों पर दिख जाती है । इसके अलावा, अनुभव करने के लिए कई चीजें हैं जैसे - हर-की-पौड़ी गंगा आरती, राजाजी नेशनल पार्क सफारी, हरिद्वार के स्थानीय भोजन का लुत्फ़, योग और आध्यात्मिक जैसी आदि गतिविधियों भी अनुभव कर सकते हैं।
आप सड़क, रेल या हवाई मार्ग से हरिद्वार पहुंच सकते हैं। सड़कें और रेल मार्ग द्वारा हरिद्वार आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग - सड़क मार्ग द्वारा हरिद्वार पहुंचने के लिये आप बस, टैक्सी या अपनी कार द्वारा पहुंच सकते हैं। हरिद्वार, दिल्ली से 220 किमी और लखनऊ शहर से लगभग 500 किमी दूर है।
रेल द्वारा - हरिद्वार रेल नेटवर्क अधिकांश प्रमुख शहरों से रेल नेटवर्क से जुड़ा हुआ है। यह दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, देहरादून, जयपुर, अहमदाबाद, पटना, गया, वाराणसी, भुवनेश्वर, पुरी और कोच्चि जैसे बड़े शहरों के मध्य निश्चित नियमित एक्सप्रेस रेल चलती है।
हवाई मार्ग द्वारा - देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है, जो मुख्य हरिद्वार से लगभग 50 किलोमीटर दूर है। आसपास के अन्य शहरों जैसे चंडीगढ़, पटना, लखनऊ, अहमदाबाद, उदयपुर, अमृतसर, रायपुर, बैंगलोर, चेन्नई, मुंबई, आदि के साथ अच्छी उड़ान कनेक्टिविटी है। एक बार जब आप देहरादून पहुँचते हैं तो आप ट्रेन या बस से हरिद्वार पहुंच सकते हैं।
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